Posted by : Anonymous Friday 15 November 2013

हिन्दू की प्रवृति (उनके धर्म ग्रन्थ के शिक्षाओं के विपरीत) स्वाभाविक रूप से सुख- सुविधा व ऐश्वर्य के प्रति जाती है| जब कभी मैं हकीकत राय के मेला पर गया, एक बात ने मुझ पर बड़ा प्रभाव डाला| हकीकत राय की समाधि पर लोग जाए है, पौराणिक हिन्दू एक पुष्प लेते है, समाधी पर चढ़ा देते है, फिर पतंग उड़ाने और मिठाइयाँ खाने में लग जाते है| शिक्षित वर्ग के व आर्यसमाजी विचार के लोग पुष्प नहीं चढाते, केवल मिठाई खाने और भ्रमण मनोरंजन में समय बिताते है| हकीकत राय की हत्या का दिन हो और लोग मिठाइयाँ खाते फिरे? अर्थात जो शोक का दिन था उसे भी हिन्दुओ ने हर्ष में परिवर्तित कर दिया|
रक्तसाक्षी ( Martyr) की स्मृति में मिठाइयाँ खान कब शोभा देता है| मुसलमानों की ओर देखें उनमे कई ऐसे ही दिन है जिसे वे बड़ी गंभीरता से रोते है| मुहर्रम के दिन हसन हुसैन के बलिदान का उनमे अब तक वही जोश या उत्तेजना एवं वही भाव रहता है| उन्होंने अपने उस दीन की विशेषता को अब तक बना के रक्खा हुआ है| परन्तु हमने मरने के दिन को भी हर्षोल्लास में परिवर्तित कर दिया| इसका कारण यह है की हिन्दू चरित्र हमेशा हर्ष की ओर ले जाता है| हर्षोल्लास गलत नहीं परन्तु शोक के दिन भी???
आप रामायण देखें, इसमें जो भी हिन्दू चरित्र है वो उच्च शिक्षा देता है परन्तु हिन्दुओ ने उसमे से कौन सा हिस्सा लिया, दशहरा में नाच गाने और खुशियाँ मानाने के अतिरिक्त और किया ही क्या जाता है? श्री कृष्ण योगी थे| उनकी स्मृति कैसे मनाई जाती है? लडको को नचाया जाता है, टोलियाँ बनायीं जाती है, रास लीलाएं की जाती है| यह प्रकट करता है की हिन्दू जाती की प्रवृत्ति किधर जा रही है|
हिन्दुओ में भोग की भावना अधिक है, (यद्यपि उसके धाम ग्रन्थ इसके विपरीत शिक्षा देते है)| हिन्दू अपने नियम के पालन की इच्छा नहीं रखता और बहाने बनता है की हमारे धर्म ग्रन्थ में कुछ भी जोड़ जबरदस्ती नहीं है जैसा इसाइयो और मुसलमानों में है| हा ये सही है की हिन्दू के धर्म ग्रन्थ उस प्रकार की जबरदस्ती नहीं करते फिर भी हमरा कुछ कर्तव्य है, और उसका पालन हमें अवश्य करना चाहिए. उन कर्तव्यों में प्रमुख है, पञ्च महा यज्ञ| उसका विस्तार से वर्णन हमारे अगले लेखो में किया जायेगा. इस भोग वृति के कारण ही हिन्दू अपने धर्म का प्रचार कार्य नहीं कर पता है. धर्म प्रचार बिना अस्त्र के किया जाने वाला संग्राम है, इस संग्राम में वही टिक सकता है जो उच्च चरित्र वाला हो अतः आज सबसे बड़ी आवश्यकता है, चरित्रवान पुरुषो की एक टोली बनाने की जो अपने सुख सुविधा को त्याग करने को सहर्ष तैयार हो| हमें राम और कृष्ण से उच्च चरित्रवान बनना और योगी होना सिखने की आवश्यकता है, नकि नाच गाना और रासलीला| 
- महात्मा हंसराज ग्रंथावली पर आधारित
आगे हम ये भी देखेंगे की धर्म का प्रचार कैसे हो और उसमे आने वाली बाधाओ को कैसे दूर किया जाये. इसके लिए हमारे पोस्ट को देखते रहिये और अपने मित्रो को अवश्य बताइए. उनको हमारे फेसबुक पेज लाइक करने को आमंत्रित कीजिये. कोई प्रश्न हो तो हमें अवश्य भेजे.| 

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