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- वास्कोडिगामा की सच्चाई - राजीव दीक्षित
Posted by : Ashutosh Garg
Sunday 1 December 2013
Reality of vasco da gama
आज से लगभग ५०० साल पहले, वास्को डी गामा आया था हिंदुस्तान. इतिहास की चोपड़ी
में, इतिहास की किताब में हमसब ने पढ़ा होगा कि सन. १४९८
में मई की २० तारीख को वास्को डी गामा हिंदुस्तान आया था. इतिहास की चोपड़ी में
हमको ये बताया गया कि वास्को डी गामा ने हिंदुस्तान की खोज की, पर ऐसा लगता है कि जैसे वास्को डी गामा ने जब
हिंदुस्तान की खोज की, तो
शायद उसके पहले हिंदुस्तान था ही नहीं.
वास्को डी गामा यहाँ आया था
भारतवर्ष को लुटने के लिए, एक बात और जो इतिहास में, बहुत गलत बताई जाती
है कि वास्को डी गामा एक बहूत बहादुर नाविक था, बहादुर सेनापति था, बहादुर सैनिक था, और हिंदुस्तान की खोज के अभियान पर निकला था, ऐसा कुछ नहीं था, सच्चाई ये है.............................................
कि पुर्तगाल का वो
उस ज़माने का डॉन था, माफ़िया था. जैसे आज के ज़माने
में हिंदुस्तान में बहूत सारे माफ़िया किंग रहे है, उनका नाम लेने की जरुरत नहीं है, ऐसे ही बहूत सारे डॉन और माफ़िया
किंग १५ वी सताब्दी में होते थे यूरोप में. और १५ वी. सताब्दी का जो यूरोप था, वहां दो देश बहूत ताकतवर थें उस
ज़माने में, एक था स्पेन और दूसरा था
पुर्तगाल. तो वास्को डी गामा जो था वो पुर्तगाल का माफ़िया किंग था. १४९० के आस पास
से वास्को डी गामा पुर्तगाल में चोरी का काम, लुटेरे का काम, डकैती डालने का काम ये सब किया करता था. और अगर सच्चा
इतिहास उसका आप खोजिए तो एक चोर और लुटेरे को हमारे इतिहास में गलत तरीके से हीरो
बना कर पेश किया गया. और ऐसा जो डॉन और माफ़िया था उस ज़माने का पुर्तगाल का ऐसा ही
एक दुसरा लुटेरा और डॉन था, माफ़िया था उसका नाम था कोलंबस, वो स्पेन का था. तो हुआ क्या था, कोलंबस गया था अमेरिका को लुटने
के लिए और वास्को डी गामा आया था भारतवर्ष को लुटने के लिए. लेकिन इन दोनों के
दिमाग में ऐसी बात आई कहाँ से, कोलंबस के दिमाग में ये किसने
डाला की चलो अमेरिका को लुटा जाए, और वास्को डी गामा के दिमाग में
किसने डाला कि चलो भारतवर्ष को लुटा जाए. तो इन दोनों को ये कहने वाले लोग कौन थे?
हुआ ये था कि १४ वी. और १५
वी. सताब्दी के बीच का जो समय था, यूरोप में दो ही देश थें जो
ताकतवर माने जाते थे, एक देश था स्पेन, दूसरा था पुर्तगाल, तो इन दोनों देशो के बीच में
अक्सर लड़ाई झगडे होते थे, लड़ाई झगड़े किस बात के होते थे
कि स्पेन के जो लुटेरे थे, वो कुछ जहांजो को लुटते थें तो
उसकी संपत्ति उनके पास आती थी, ऐसे ही पुर्तगाल के कुछ लुटेरे
हुआ करते थे वो जहांज को लुटते थें तो उनके पास संपत्ति आती थी, तो संपत्ति का झगड़ा होता था कि
कौन-कौन संपत्ति ज्यादा रखेगा. स्पेन के पास ज्यादा संपत्ति जाएगी या पुर्तगाल के
पास ज्यादा संपत्ति जाएगी. तो उस संपत्ति का बटवारा करने के लिए कई बार जो झगड़े
होते थे वो वहां की धर्मसत्ता के पास ले जाए जाते थे. और उस ज़माने की वहां की जो
धर्मसत्ता थी, वो क्रिस्चियनिटी की सत्ता थी, और क्रिस्चियनिटी की सत्ता में
१४९२ के आसपास पोप होता था जो सिक्स्थ कहलाता था, छठवा पोप. तो एक बार ऐसे ही झगड़ा हुआ, पुर्तगाल और स्पेन की सत्ताओ के
बीच में, और झगड़ा किस बात को ले कर था? झगड़ा इस बात को ले कर था कि लूट
का माल जो मिले वो किसके हिस्से में ज्यादा जाए. तो उस ज़माने के पोप ने एक
अध्यादेश जारी किया. सन १४९२ में, और वो नोटिफिकेशन क्या था? वो नोटिफिकेशन ये था कि १४९२ के
बाद, सारी दुनिया की संपत्ति को
उन्होंने दो हिस्सों में बाँटा, और दो हिस्सों में ऐसा बाँटा कि
दुनिया का एक हिस्सा पूर्वी हिस्सा, और दुनिया का दूसरा हिस्सा पश्चिमी हिस्सा. तो पूर्वी
हिस्से की संपत्ति को लुटने का काम पुर्तगाल करेगा और पश्चिमी हिस्से की संपत्ति
को लुटने का काम स्पेन करेगा. ये आदेश १४९२ में पोप ने जारी किया. ये आदेश जारी
करते समय, जो मूल सवाल है वो ये है कि
क्या किसी पोप को ये अधिकार है कि वो दुनिया को दो हिस्सों में बांटे, और उन दोनों हिस्सों को लुटने
के लिए दो अलग अलग देशो की नियुक्ति कर दे? स्पैन को कहा की दुनिया के पश्चिमी हिस्से को तुम लूटो, पुर्तगाल को कहा की दुनिया के
पूर्वी हिस्से को तुम लूटो और १४९२ में जारी किया हुआ वो आदेश और बुल आज भी
एग्जिस्ट करता है.
ये क्रिस्चियनिटी की धर्मसत्ता
कितनी खतरनाक हो सकती है उसका एक अंदाजा इस बात से लगता है कि उन्होंने मान लिया
कि सारी दुनिया तो हमारी है और इस दुनिया को दो हिस्सों में बांट दो पुर्तगाली
पूर्वी हिस्से को लूटेंगे, स्पेनीश लोग पश्चिमी हिस्से को
लूटेंगे. पुर्तगालियो को चूँकि दुनिया के पूर्वी हिस्से को लुटने का आदेश मिला पोप
की तरफ से तो उसी लुट को करने के लिए वास्को डी गामा हमारे देश आया था. क्योकि
भारतवर्ष दुनिया के पूर्वी हिस्से में पड़ता है. और उसी लुट के सिलसिले को बरकरार
रखने के लिए कोलंबस अमरीका गया. इतिहास बताता है कि १४९२ में कोलंबस अमरीका पहुंचा, और १४९८ में वास्को डी गामा
हिंदुस्तान पहुंचा, भारतवर्ष पहुंचा. कोलंबस जब अमरीका पहुंचा तो
उसने अमरीका में, जो मूल प्रजाति थी रेड इंडियन्स
जिनको माया सभ्यता के लोग कहते थे, उन माया सभ्यता के लोगों से मार कर पिट कर सोना चांदी छिनने
का काम शुरु किया. इतिहास में ये बराबर गलत जानकारी हमको दी गई कि कोलंबस कोई महान
व्यक्ति था, महान व्यक्ति नहीं था, नराधम था. और वो किस दर्जे का नराधम था, सोना चांदी लुटने के लिए अगर
किसी की हत्या करनी पड़े तो कोलंबस उसमे पीछे नहीं रहता था, उस आदमी ने १४ – १५ वर्षो तक बराबर अमरीका के
रेड इन्डियन लोगों को लुटा, और उस लुट से भर – भर कर जहांज जब स्पेन गए तो
स्पेन के लोगों को लगा कि अमेरिका में तो बहुत सम्पत्ति है, तो स्पेन की फ़ौज और स्पेन की
आर्मी फिर अमरीका पहुंची. और स्पेन की फ़ौज और स्पेन की आर्मी ने अमरीका में पहुँच
कर १० करोड़ रेड इंडियन्स को मौत के घाट उतार दिया. १० करोड़. और ये दस करोड़ रेड
इंडियन्स मूल रूप से अमरीका के बाशिंदे थे. ये जो अमरीका का चेहरा आज आपको दिखाई
देता है, ये अमरीका १० करोड़ रेड इन्डियन
की लाश पर खड़ा हुआ एक देश है. कितने हैवानियत वाले लोग होंगे, कितने नराधम किस्म के लोग होंगे, जो सबसे पहले गए अमरीका को
बसाने के लिए, उसका एक अंदाजा आपको लग सकता है, आज स्थिति क्या है कि जो अमरीका
की मूल प्रजा है, जिनको रेड इंडियन कहते है, उनकी संख्या मात्र ६५००० रह गई
है.
१० करोड़ लोगों को मौत के घाट
उतारने वाले लोग आज हमको सिखाते है कि हिंदुस्तान में ह्यूमन राईट की स्थिति बहुत
ख़राब है. जिनका इतिहास ही ह्यूमन राईट के वोइलेसन पे टिका हुआ है, जिनकी पूरी की पूरी सभ्यता १०
करोड़ लोगों की लाश पर टिकी हुई है, जिनकी पूरी की पूरी तरक्की और विकास १० करोड़ रेड इंडियनों
लोगों के खून से लिखा गया है, ऐसे अमरीका के लोग आज हमको कहते
है कि हिंदुस्तान में साहब, ह्यूमन राईट की बड़ी ख़राब स्थिति
है, कश्मीर में, पंजाब में, वगेरह वगेरह. और जो काम मारने
का, पीटने का, लोगों की हत्याए कर के सोना
लुटने का, चांदी लुटने का काम कोलंबस और
स्पेन के लोगों ने अमरीका में किया, ठीक वही काम वास्को डी गामा ने १४९८ में हिंदुस्तान में
किया. ये वास्को डी गामा जब कालीकट में आया, २० मई, १४९८ को, तो कालीकट का राजा था उस समय
झामोरिन, तो झामोरिन के राज्य में जब ये
पहुंचा वास्को डी गामा, तो उसने कहा कि मै तो आपका
मेहमान हु, और हिंदुस्तान के बारे में उसको
कहीं से पता चल गया था कि इस देश में अतिथि देवो भव की परंपरा. तो झामोरिन ने
बेचारे ने, ये अथिति है ऐसा मान कर उसका
स्वागत किया, वास्को डी गामा ने कहा कि मुझे
आपके राज्य में रहने के लिए कुछ जगह चाहिए, आप मुझे रहने की इजाजत दे दो, परमीशन दे दो. झामोरिन बिचारा सीधा सदा आदमी था, उसने कालीकट में वास्को डी गामा
को रहने की इजाजत दे दी. जिस वास्को डी गामा को झामोरिन के राजा ने अथिति बनाया, उसका आथित्य ग्रहण किया, उसके यहाँ रहना शुरु किया, उसी झामोरिन की वास्को डी गामा
ने हत्या कराइ. और हत्या करा के खुद वास्को डी गामा कालीकट का मालिक बना. और
कालीकट का मालिक बनने के बाद उसने क्या किया कि समुद्र के किनारे है कालीकट केरल
में, वहां से जो जहांज आते जाते थे, जिसमे हिन्दुस्तानी व्यापारी
अपना माल भर-भर के साउथ ईस्ट एशिया और अरब के देशो में व्यापार के लिए भेजते थे, उन जहांजो पर टैक्स वसूलने का
काम वास्को डी गामा करता था. और अगर कोई जहांज वास्को डी गामा को टैक्स ना दे, तो उस जहांज को समुद्र में
डुबोने का काम वास्को डी गामा करता था.
पोर्तुगीज सरकार के जो
डॉक्यूमेंट है वो बताते है कि वास्को डी
गामा पहली बार जब हिंदुस्तान से गया, लुट कर सम्पत्ति को ले कर के गया, तो ७ जहांज भर के सोने की
अशर्फिया, उसके बाद दुबारा फिर आया
वास्को डी गामा. वास्को डी गामा हिंदुस्तान में ३ बार आया लगातार लुटने के बाद, चौथी बार भी आता लेकिन मर गया.
दूसरी बार आया तो हिंदुस्तान से लुट कर जो ले गया
वो करीब ११ से १२ जहांज भर के सोने की अशर्फिया थी. और तीसरी बार आया और
हिंदुस्तान से जो लुट कर ले गया वो २१ से २२ जहांज भर के सोने की अशर्फिया थी.
इतना सोना चांदी लुट कर जब वास्को डी गामा यहाँ से ले गया तो पुर्तगाल के लोगों को
पता चला कि हिंदुस्तान में तो बहुत सम्पत्ति है. और भारतवर्ष की सम्पत्ति के बारे
में उन्होंने पुर्तगालियो ने पहले भी कहीं पढ़ा था, उनको कहीं से ये टेक्स्ट मिल गया था कि भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पर महमूद गजनवी नाम का एक
व्यक्ति आया, १७ साल बराबर आता रहा, लुटता रहा इस देश को, एक ही मंदिर को, सोमनाथ का मंदिर जो वेरावल में
है. उस सोमनाथ के मंदिर को महमूद गजनवी नाम का एक व्यक्ति, एक वर्ष आया अरबों खरबों की
सम्पत्ति ले कर चला गया, दुसरे साल आया, फिर अरबों खरबों की सम्पत्ति ले
गया. तीसरे साल आया, फिर लुट कर ले गया. और १७ साल
वो बराबर आता रहा, और लुट कर ले जाता रहा. तो वो
टेक्स्ट भी उनको मिल गए थे कि एक एक मंदिर में इतनी सम्पत्ति, इतनी पूंजी है, इतना पैसा है भारत में, तो चलो इस देश को लुटा जाए, और उस ज़माने में एक जानकारी और
दे दू, ये जो यूरोप वाले अमरीका वाले
जितना अपने आप को विकसित कहे, सच्चाई ये है कि १४ वी. और १५
वी. शताब्दी में दुनिया में सबसे ज्यादा गरीबी यूरोप के देशो में थी. खाने पीने को
भी कुछ होता नहीं था. प्रकृति ने उनको हमारी तरह कुछ भी नहीं दिया, न उनके पास नेचुरल रिसोर्सेस है, जितने हमारे पास है. न मौसम
बहूत अच्छा है, न खेती बहुत अच्छी होती थी और
उद्योगों का तो प्रश्न ही नहीं उठता. १३ फी. और १४ वी. शताब्दी में तो यूरोप में
कोई उद्योग नहीं होता था. तो उनलोगों का मूलतः जीविका का जो साधन था जो वो लुटेरे
बन के काम से जीविका चलाते थे. चोरी करते थे, डकैती करते थे, लुट डालते थे, ये मूल काम वाले यूरोप के लोग थे, तो उनको पता लगा कि हिंदुस्तान
और भारतवर्ष में इतनी सम्पत्ति है तो उस देश को लुटा जाए, और वास्को डी गामा ने आ कर
हिंदुस्तान में लुट का एक नया इतिहास शुरु किया. उससे पहले भी लुट चली हमारी, महमूद गजनवी जैसे लोग हमको
लुटते रहे.
लेकिन वास्को डी गामा ने आकर लुट को जिस तरह से
केन्द्रित किया और ओर्गनाइजड किया वो समझने की जरूरत है. उसके पीछे पीछे क्या हुआ, पुर्तगाली लोग आए, उन्होंने ७० – ८० वर्षो तक इस देश को खूब जम कर लुटा. पुर्तगाली चले
गए इस देश को लुटने के बाद, फिर
उसके पीछे फ़्रांसिसी आए, उन्होंने
इस देश को खूब जमकर लुटा ७० – ८०
वर्ष उन्होंने भी पुरे किए. उसके बाद डच आ गये हालैंड वाले, उन्होंने इस देश को लुटा. उसके बाद फिर अंग्रेज आ गए
हिंदुस्तान में लुटने के लिए ही नहीं बल्कि इस देश पर राज्य भी करने के लिए.
पुर्तगाली आए लुटने के लिए, फ़्रांसिसी
आए लुटने के लिए, डच आए
लुटने के लिए, और फिर पीछे से अंग्रेज चले आए लुटने के लिए, अंग्रेजो ने लुट का तरीका बदल दिया.आगे पलासी के युद्ध की सच्चाई जानने के लिए यहाँ क्लिक करे|
वास्को डी गामा की सचाई राजीव भाई के श्री मुख से सुने -