Posted by : Ashutosh Garg Thursday 13 March 2014


आज जो अरविन्द जी की स्थिति है उसे देखकर मुझे तरस भी आता है दुःख भी होता है. आज जिस प्रकार से सभी अरविन्द जी का विरोध बीजेपी और अन्य राजनितिक दलों के समर्थकों द्वारा हो रहा है, तथा जो दुर्गति उनके व्यक्तित्व का सोशल मीडिया पर हुआ है वो सचमुच चिंतनीय है. अब भी ये बहस का विषय हो सकता है कि राजनीति में आने के पीछे केजरीवाल का अपना स्वार्थ छुपा था अथवा नहीं परन्तु उनके आने से कई ऐसे लोग जिनकी राजनितिक मंशा पूरी नहीं हो पा रही थी उन्हें अवश्य लाभ हुआ था अतः ये नहीं कहा जा सकता की सभी लोग जो
आ.आ.पा. के साथ जुड़े थे वे भ्रष्टाचार के विरोध में ही खड़े थे. बहुत से लोग जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध है वो बीजेपी से भी जुड़े है.

कारण ये भी था की जिस तरह अरविन्द जी कांग्रेस और बीजेपी को एक ही तरीके से तौल रहे थे वैसा नहीं है. बीजेपी कही न कहीं कांग्रेस से बहुत बेहतर है. ये अवश्य है की बीजेपी भी आदर्श नहीं है, और देखा जाये तो किसी भी पार्टी के लिए आदर्श होना असंभव जैसा प्रतीत होता है. कोई ये दावा  नहीं कर सकता कि मेरी पार्टी में आने वाले सभी सदस्य उतने ही इमानदार है जितना मैं हूँ चाहे वो अटल जी हो या अरविन्द जी. (हालाँकि यहाँ तो अरविन्द की मंशा ही पूर्णरूप से साफ प्रतित नहीं हो रही है.)
यदि कोई बीजेपी के स्थापना के समय के अटल जी के भाषण को देखे तो उन्हें पता चलेगा की अरविन्द जी उनकी ही कॉपी करने का प्रयास कर रहे है. परन्तु संदेह ये है की कहीं अरविन्द जी के साथ भी वही न हो जैसा बीजेपी के साथ हुआ. जैसे जैसे बीजेपी की सरकारें कुछ राज्यों में बनी अधिक लोग बीजेपी से जुड़े और इस कारन से कुछ बेईमान भी जुड़े, और जो बीजेपी अपने को “पार्टी विथ अ डिफरेंस” नाम से पुकारा करती थी वो भी संदेह के घेरे में आई तथापि बहुत से बीजेपी के नेताओ ने अच्छा उदहारण भी जनता के समक्ष प्रस्तुत किया. अभी भी तमाम कमियों के बाद भी सभी पार्टियों में सबसे अच्छी पार्टी बीजेपी ही कही जा सकती है हालाँकि उसपर साम्प्रदायिकता के आरोप लगते रहे है और उसे हम अगले किसी लेख में देखने का प्रयास करेंगे. 
अब हम अपने शीर्षक के अनुसार कुछ ध्यान से अरविन्द जी के कार्यो को भी देखते है. अरविन्द जी एक पढ़े लिखे व्यक्ति है, इमानदार आरटीआई एक्टिविस्ट भी रहे है. जन लोकपाल के आन्दोलन में अन्नाजी को काफी मदद भी की. इन सब में एक जिम्मेवार नागरिक होने के नाते हम सभी उनके और अन्ना जी के साथ हम थें. परन्तु सभी आश्चर्य चकित तब रह गए जब उन्होंने अपनी पार्टी बनाने की घोषणा की. यही से लोग उनसे छिटकने लगे कारण कि उस समय तक मोदी की एक लहर सी आ गयी थी, और देश का युवा कांग्रेस से त्रस्त हो मोदी में एक नयी उम्मीद देख रहा था. परन्तु फिर भी कई लोग उनके साथ रहे और एक इमानदार नेता की खोज में दिल्ली ने उन्हें वोट भी दिया क्योकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही दिल्ली को निराश किया था. हालाँकि उन्होंने भी दिल्ली की जनता को निराश किया. और कुछ भी बहाना बना कर अपनी जिम्मेवारियो से भाग निकले. और ये चिन्ह वो कई दिन पहले से दे रहे थे, यही कारन है की किरण बेदी जी ने पहले ही कह दिया था की केजरीवाल से राज्य संभल नहीं पा रहा है और वे भागने का प्रयास कर सकते है जो की बाद में सच साबित हुआ. 
जब अरविन्द जी लोकसभा के चुनाव में कूदे तो कुछ लोगो ने समर्थन दिया और विरोध बढ़ा कारन ये था की युवा नहीं चाहता था की देश में अस्थिर सरकार की स्थिति उत्पन्न हो और उसका फायदा कांग्रेस को पहुंचे. दिल्ली में पहले ही वो बीजेपी को रोक चुके थे. आ.आ.पा. को इतनी सफलता पुरे भारत में तो मिल नहीं सकती है जितनी दिल्ली में मिली परन्तु कांग्रेस विरोधी वोट जो आ.आ.पा. के अनुपस्थिति में बीजेपी को मिल सकता था वो कटने की पूरी उम्मीद है. इससे कांग्रेस को मदद मिल सकती है.
एक और खतरा है कि जिस प्रकार से आ.आ.पा. के अरविन्द जी और अन्य साम्प्रदायिकता के राजनीती का आरोप लगा रहे है बीजेपी पर, कहीं चुनाव के बाद सेकुलरिज्म के नाम पर कांग्रेस के साथ न चले जाये. और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होकर भी विरोधी दल न बन जाए. ऐसे में कांग्रेस के कुशासन का दंश भारत को पुनः झेलना पर सकता है. और यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो प्रश्न ये होगा की अरविन्द जी क्या करना चाहते है. क्या वे देश को अस्थिर करने की इच्छा रखते है ३० या ४० सीट यदि उनके पास आ भी जाये तो क्या होगा. क्या जन लोकपाल पास हो जायेगा. कदापि नहीं.
राजनैतिक पार्टियों के कुछ कार्यो में अवश्य आ.आ.पा. का असर दिखा है परन्तु जो उनका मूल उद्देश्य है "जन लोकपाल" वो अगले १० सालों में सपने जैसा ही दीखता है. क्या बिना राजनीती में आये वे इससे ज्यादा समर्थन नहीं पाते. क्या वे अन्य पार्टियों पर वे अधिक दवाब नहीं डाल पाते. और यदि ऐसा है तो आज ये प्रश्न मैं छोड़ के जाता हूँ की आखिर क्या प्राप्त हुआ.
और आज जब सोशल मीडिया पर कजरी जी की दुर्गति देखता हूँ, उन्ही लोगो के द्वारा जो उनके राजनीति में आने से पहले तक उनका समर्थन करते थे (अपने आप को मैं इसी श्रेणी में पाता हूँ) | तो ये सोचा करता हूँ की काश अरविन्द "आप" इस राजनीति में नहीं आते.

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