Syrian Crisis (English)
Syria today is in state of ruins and
anarchy. The crisis started in March 2011 when demonstration against
dictatorship turned into an armed conflict. The protest was part of a movement
called ‘Arab Spring ‘.Syrians rose against Assad’s dictatorial regime demanding
for democracy. Fundamentalist group such as Muslim Brotherhood seized this
opportunity to make Syria an Islamic state which they were trying to do since
independence of Syria. Involvement of fundamentalists outfit gave sectarian
colour to the revolt, overshadowing its political motives. The present
situation of Syria has its roots deeply embedded in its past. Sunnis form major
part of Syrian population, they account for 74% while Alawites and Christians
forms 12% and 10% respectively. Alawites are an offshoot of Shia sect of
Muslims. They share a long history of persecution by Sunnis. Their persecution dates back to Ottoman Empire
when they were forced to convert to Sunni. Sunni and Alawites have long history
of enmity which even today shape the events of Syria. The great hero of Syria
during times of crusade Saladin persecuted Shia and mitigated their influence.
Alawites being in small numbers were an easy target. The most famous incident of
alawite persecution happened in Tripoli when a Sunni Muslim cleric issued an
edict condemning sects that were heretic. He singled out Alawites and even
claimed that they were more heretic than Christians. This led to widespread slaughter
and killings of Alawites. It is estimated that more than 20000 Alawites were
killed. They were denied rights in society and were forced to live on mountains
for years and Alawites of Syria were no exception. When French colonised Syria
they exploited rift between Sunni and Alawites. They gave political powers to
Alawites to check Sunni nationalists. Alawites on getting social and political power
became loyal to French. When French left Syria, there was a struggle of power.
Post-independence politics was dominated by Sunnis. Many Sunni organizations
wanted Syria to be an Islamic state. Many resented, aqmong them was a young
Alawite Hafez –al –Assad. He wanted Syria to be a secular state. He seized
power through a military coup in 1970. From a poor Alawite of Syria he became ruler
of it. He established Syria as a secular state, safeguarding rights of minority.
But he ruled like a dictator making Syria a police state. Muslim Brotherhood
can’t digest an alawite whom they consider heretic ruling country with 70%
Sunni. They were against secularism which was embedded in Assad’s regime. They
resorted to same tactics as used by Muslim terrorists today. They launched a
terror campaign which lasted 6 years from late 70’s to early 80’s.There was
widespread bombings, assassinations, executions killing politicians, civilians
and intellectuals. A bomb blast in Damascus killed Alawite military cadets and
Assad also survived an assassination attempt. Now Assad retaliated with full
force and brutality. Widespread executions and arrests were carried out. The
ancient city of Hama a stronghold of Muslim Brotherhood was dealt with stiff
hand. The raid in Hama carried out in February 1982 led to killing of all
insurgents and many civilian. Total casualties amounted to more than 10000. Muslim
Brotherhood was battered to the core. Now in present situation they want
achieve objectives which was left unachieved during reign of Hafez –al-Assad
.They joined hands with Al-Nusra front a franchise of Al-quaida in Syria. The
support for both rebels and government are motivated by sectarian interest.
Hezbollah and Iran are supporting Assad while Al-Quaida and Arab countries are
supporting rebels. Protesters demanding democracy are torn between this
sectarian conflict. Fundamentalist forces are in total command of rebel
leadership. Syria may not be good under Assad dictatorial regime but it will
never be better under reign of fundamentalists. Syria must take lessons from
history of Afghanistan and mitigate rising influence of fundamentalist forces.
KASHMIRI PANDITS- REFUGEES IN THEIR OWN NATION
CONDITION OF KASHMIRI PANDITS
The Kashmiri Pandits (also known as Kashmiri Brahmins) are a Brahmin community from the Kashmir Valley, a mountainous region in the state of Jammu and Kashmir in India.
Exactly 24 years ago, on January 19, 1990, the biggest ever exodus of people happened since the partition of India. The minority Hindus of Kashmir, Kashmiri Pandits, fled the valley leaving behind their homes and homeland to save themselves from persecution at the behest of Islamic extremists/terrorists.
Monday 24 November 2014
Posted by Ashutosh Garg
Ancient Indian Education system by Rajiv Dixit
एक जर्मन दार्शनिक हुआ, उसका नाम है मैक्स मुलर. ये मैक्स मुलर ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर सबसे ज्यादा शोध कार्य किया है. और वो ये कहता है कि मै भारत की शिक्षा व्यवस्था से इतना प्रभावित हूँ, शायद ही दुनिया के किसी भी देश में इतनी सुंदर शिक्षा व्यवस्था होगी जो भारत में है और भारत के बंगाल राज्य के बारे में, मैक्स मुलर एक आंकड़ा दे रहा है, कि भारत का जो बंगाल राज्य है, बंगाल प्रान्त है, बंगाल प्रान्त आप जानते है ? भारत का एक प्रान्त है, और ये जब बंगाल की जो ये बात मैक्स मुलर कह रहा है, वो बंगाल है, जिसमे पूरा बिहार है,आधा ओरिसा है, आज का पूरा पश्चिम बंगाल है, और आसाम है, और आसाम के ऊपर के छोटे छोटे सात प्रदेश है. इस बंगाल राज्य के बारे में मैक्स मुलर कह रहा है कि मेरी जानकारी में ८०,००० से अधिक गुरुकुल पुरे बंगाल में सफलता के साथ पिछले हजारो साल से चल रहे है. ८०,००० गुरुकुल, ये मैक्स मुलर ने गिनती करवाई है, और सिर्फ एक राज्य के बारे में, वह एक राज्य है बंगाल.
इसी तरह से एक अंग्रेज विद्वान है, शिक्षाशास्त्री है, उसका नाम है लुद्लो, और लुद्लो आता है भारत में, और करीब सोलह सत्रह साल रहता है इस देश में. और सोलह सत्रह साल रह कर भारत में घुमा है. घुमने के बाद शिक्षा व्यवस्था पर उसने सर्वेक्षण किया है. वो कह रहा है कि भारत में एक भी गाँव ऐसा नहीं है, जहाँ कम से कम एक गुरुकुल नहीं है. कम से कम, माने हर गाँव में कम से कम एक गुरुकुल तो है ही. एक से भी ज्यादा है. फिर वो कह रहा है कि भारत के बच्चे एक भी ऐसे नहीं है जो गुरुकुल में न जाते हों पढाई के लिए, माने सभी बच्चे गुरुकुल में जाते है पढाई के लिए. अब आप पूछेंगे कि ये लुद्लो किस समय की बात कर रहा है, ये लुद्लो १८ वी. सताब्दी की बात कह रहा है. ज्यादा पुरानी बात नहीं कह रहा है. उसके अलावा एक और अंग्रेज है जिसका नाम है जी. डब्लू. लिट्नेर, वो ये कहता है कि मैंने भारत के उत्तर वाले इलाके का पूरा सर्वेक्षण किया है शिक्षा का, और मेरे सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि भारत में २०० लोगों पर एक गुरुकुल चलता है. भारत में २०० लोगों पर एक गुरुकुल चलता है पुरे उत्तर भारत की रिपोर्ट में वो ये निष्कर्ष दे रहा है. और उत्तर भारत का मतलब क्या है, आज का पूरा का पूरा पाकिस्तान, आज का पूरा का पूरा पंजाब, आज का पूरा का पूरा हरियाणा, आज का पूरा का पूरा जम्मू कश्मीर, आज का पूरा हिमांचल प्रदेश. आज का पूरा का पूरा उत्तर प्रदेश, और आज का पूरा उत्तराखंड. ये सारा इलाका मिलकर उत्तर भारत है, और पुरे उत्तर भारत के बारे में लिट्नेर की रिपोर्ट है सन १८२२ की, उसमे वो कहता है, कि २०० लोगों पर कम से कम १ गुरुकुल पूरे उत्तर भारत में है. और इसी तरह से थॉमस मुनरो की रिपोर्ट है, वो ये कह रहा है कि दक्षिण भारत में ४०० लोगों पर कम से कम १ गुरुकुल भारत में है. अब ये उत्तर और दक्षिण को मिला दिया जाए तो सारे भारत के बारे में औसत निकला जाए. तो ये औसत निकलता है कि ३०० लोगों पर कम से कम एक गुरुकुल भारत में है. और जिस ज़माने में ये सर्वेक्षण हुआ है, उस ज़माने में भारत की जनसँख्या लगभग २० करोड़ के आस पास है. तो २० करोड़ की जनसंख्या में ३०० लोगों पर अगर एक गुरुकुल अगर आप निकालेंगे तो कुल २० करोड़ लोगों के ऊपर लगभग ७,३२००० के आस पास गुरुकुल निकलते है. माने सम्पूर्ण भारत देश में लगभग ७,३२००० गुरुकुल है सन. १८२२ के आस पास के ये आंकड़े है. इसका मतलब क्या है? आप और इस बात को हैरानी से समझने की कोशिश करिए कि सन. १८२२ में भारत में ७,३२००० अगर गुरुकुल है, तो गाँव कितने है? तो आपको मालूम है अंग्रेज दस दस वर्ष में भारत की जनसँख्या का सर्वेक्षण करते रहते थे, तो उस ज़माने के सर्वेक्षण से ये पता चला कि भारत में कुल गाँव की संख्या भी लगभग ७,३२००० ही है. माने जितने गाँव है, उतने ही गुरुकुल इस देश में है, माने हर गाँव में पढने के लिए पूरी की पूरी व्यवस्था है, आज की भाषा में कहें तो कम से कम एक स्कूल हर गाँव में है.
इसी रिपोर्ट में आगे चले तो और एक अदभुत बात पता चलती है. कि सन. १८२२ में भारत में तो हर गाँव में एक स्कुल है. तो इंग्लैंड की जरा बात करे, यूरोप की जरा बात करें, कि वहां कितने स्कुल है? और वहां कितने गाँव में कितने स्कुल है कितनी आबादी पे कितने स्कुल है? तो अंग्रेजो के इतिहास के बारे में पता चलता है कि सन. १८६८ तक तो पूरे इंग्लैंड में सामान्य बच्चो को पढ़ाने के लिए एक भी स्कूल नहीं था १८६८ तक,और हमारे यहाँ १८२२ तक पुरे भारत देश में हर गाँव में एक गुरुकुल था, सामान्य बच्चो को पढाने के लिए. मतलब हमारी शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजो से बहुत बहुत बहुत आगे थी. और इसी जी. डब्लू. लिट्नेर रिपोर्ट में में मै आपसे आगे कहू, लिट्नेर कहता है कि सम्पूर्ण भारत देश में ९७ प्रतिशत साक्षरता की दर है, माने ९७ प्रतिशत भारतवासी सुशिक्षित है, साक्षर है. सिर्फ ३ प्रतिशत भारतवासी है जिनको पढने का कोई मौका शायद जीवन में नहीं मिला है. तो ९७ प्रतिशत साक्षरता है हमारे देश में. अब अगर आज के भारत की बात करें, २००९ के भारत की बात करे, तो आपको मालूम है, इस समय भारत में साक्षरता की दर पूरी ताकत लगा कर जब भारत देश में सर्व शिक्षा अभियान चल रहा है, ऊपर से निचे तक हजारों करोडो रूपये खर्च किये जा रहे है, तब हमारे देश में साक्षरता की दर मात्र ५० प्रतिसत पहुँच पाई है. १८२२ में हमारी साक्षरता की दर ९७ प्रतिशत रही है. माने हमारी शिक्षा व्यवस्था आज जो है, इससे कई गुना अच्छी अंग्रेजो के आने से पहले इस देश में रही है.
फिर भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में एक और अधूत बात है जो सारी दुनिया के लिए जानने योग्य है. भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्या है, ये जो गुरुकुल है, इन गुरुकुलों को चलने के लिए कभी किसी राजा से कोई दान या अनुदान नहीं लिया जाता,७,३२००० गुरुकुल इस देश में चलते है और किसी राजा से एक पैसा नहीं लिया जाता. ये सारे गुरुकुल समाज के द्वारा चलाए जाते है. आप बोलेंगे की समाज के द्वारा कैसे चलते है ? हमारे गाँव गाँव में जहाँ जहाँ गुरुकुल रहे है, वहां समाज के लोगों में गुरुकुल के लिए भूमि दान कर रखी है. और उस भूमि पर जितना उत्पादन होता है, उस उत्पादन की आय से गुरुकुल आराम से चलता है. जरुरत पड़े तो गाँव के लोग गुरुकुल के लिए दान इकठ्ठा करते है, और गुरुकुल उसका उपयोग करता है, तो सारे भारत के गुरुकुल साधारण लोगों के दान के पैसे से चलते है, राजा के पैसे से इस देश में एक भी गुरुकुल नहीं चलता है. ये सबसे महत्व की बात है जो सारी दुनिया को जानने के लिए है.
इसके अलावा भारत के गुरुकुलों में समय क्या है पढाई का? तो सूर्योदय से सूर्यास्त का,ये समय है पढाई का. हमारे यहाँ आजकल के जो स्कूल चलते है, वहां का समय है सुबह के १० बजे से दोपहर २ – ३ बजे तक, लेकिन हमारे प्राचीन गुरुकुलों में जो समय है वो सूर्योदय से ले कर सूर्यास्त तक, अब सूर्योदय से ले के सूर्यास्त तक जो विद्यार्थी है, वो क्या क्या पढ़ते है तो उनमे वो १८ विषय पढ़ते है. गणित पढ़ते है, जिसको वैदिक गणित कहा जाता है, खगोल शास्त्र पढ़ते है, नक्षत्र विज्ञान पढ़ते है, धातु विज्ञान पढ़ते है,जिसको आज हम मैट्रोलोजी कहते है, एस्ट्रो फिजिक्स पढ़ते है, केमिस्ट्री माने रसायन शास्त्र पढ़ते है, ऐसे लगभग १८ विषय विद्यार्थिओं को पढाये जाते है. और आपको ऐसा लगता होगा, कई लोगों के मन में ये भ्रम हो जाता है कि भारत में गुरुकुल माने खाली संस्कृत पढाई जाती होगी, और वेद और उपनिषद पढ़ा दिए जाते होंगे. लेकिन यहाँ दस्तावेज बताते है कि भारत में सभी गुरुकुलों में संस्कृत तो पढाई जाती है माध्यम के लिए और वेद पढाए जाते है और उपनिषद पढाये जाते है विद्यार्थियो में संस्कार देने के लिए, लेकिन विद्या देने के लिए खगोल शास्त्र, नक्षत्र विज्ञान, धातु विज्ञान, धातु कला और फिर शौर्य विज्ञान माने सैन्य विज्ञान जिसको हम कहते है, जिसको मिलिट्री ट्रेनिंग कहते है. इस तरह के १८ विषय अलग अलग विद्यार्थियों को पढाये जाते है. फिर इन गुरुकुलों में पढने के लिए विद्यार्थी जब आते है, तो उनकी उम्र कितनी होती है ? तो एक अंग्रेज अधिकारी लिख रहा है, उसका नाम है पेंटर ग्रा वो ये कहता है कि कोई बच्चा, भारत में पांच साल, पांच महीने, और पांच दिन का हो जाता है बस उसी दिन उसका गुरुकुल में प्रवेश हो जाता है. पांच साल, पांच महीने, और पांच दिन का हो जाता है उसी दिन बच्चे प्रवेश का गुरुकुल में हो जाता है. लगातार १४ वर्ष तक वो गुरुकुल में पढता है और १४ वर्ष की शिक्षा पूरी कर के वो गुरुकुल से बाहर निकलता है. तो एक सम्पूर्ण मानव बन के निकलता है. और वो जिम्मेदारी परिवार की उठा सकता है, समाज की उठा सकता है और देश की उठा सकता है. और पेंटर ग्रा कहता है कि शिक्षा भारत में इतनी आसान है कि गरीब हो या अमीर हो, पैसे वाला हो या बिना पैसे वाला हो,सबके लिए शिक्षा सामान है और सबके लिए व्यवस्था सामान है. और आपने तो ये बात बहुत बार सुनी होगी कि हमारे देशो में गुरुकुलों की व्यवस्था ऐसी ही रही है, कि भगवान श्री कृष्ण भी जिस गुरुकुल में पढ़े, उसी गुरुकुल में उनके मित्र सुदामा भी पढ़े. और सुदामा की आर्थिक स्तिथि के बारे में आप जानते है कि भगवान कृष्ण को मुट्ठी भर चावल तक नहीं खिला सकते, इतनी आर्थिक स्तिथि कमजोर है, फिर भी सुदामा को गुरुकुल में प्रवेश मिला है और श्री कृष्ण के साथ बैठ कर उन्होंने शिक्षा ग्रहण की है. माने एक तरफ करोडपति का बेटा, दूसरी तरफ रोडपति का बेटा दोनों एक ही जगह बैठ कर सामान शिक्षा ले रहे है. और गुरु उनको सामान भाव से शिक्षा दे रहा है. भारतीय गुरुकुलों की ये अदभुत विशेषता है. सारी दुनिया के विद्वान् इस बात पर भारत की बहुत प्रशंशा करते है. वो ये कहते है कि भारत की शिक्षा हमेशा से निशुल्क रही है. निशुल्क शिक्षा के कारण गरीब हो या अमीर सबको पढने की व्यवस्था भारत में रही है. माने बहुत ज्यादा पैसा है वो ही पढ़ पाएगा, जिसके पास पैसा नहीं है वो नहीं पढ़ पाएगा, ये भारत के गुरुकुलों में कभी नहीं रहा.
थोड़ा आगे बढ़ता हु, इन गुरुकुलों के आधार पर जो भारत में जो चलता रहा है, वो क्या है, इन गुरुकुलों में विद्यार्थी धातु विज्ञान सीखते है या नक्षत्र विज्ञान सीखते है या खगोल विज्ञान सीखते है या धातुकर्म सीखते है या भवन विज्ञान सीखते है जो कुछ भी सीखते है, और सीख कर निकलते है, शायद वही बड़े बड़े वैज्ञानिक और इंजिनियर हो जाते है. १४ वर्ष की पढाई सामान्य नहीं होती है. आज की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में अगर हम देखें तो यहाँ १४ वर्ष की पढाई तो जो प्रोफेशनल एजुकेशन है उसी में होती है. यहाँ तो भारत में सामान्य गुरुकुलों में १४ वर्ष की पढाई होती है. और इसके बाद विशेषज्ञता हासिल करनी है, पंडित होना है, पांडित्य आपको लाना है, तो उसके लिए उच्च शिक्षा के केंद्र इस देश में चलते है. जिनको उच्च शिक्षा केंद्र अंग्रेजो ने कहा है, आज उनको हम भारत में यूनिवर्सिटी और कॉलेजेस कह सकते है. आज इस भारत देश में,२००९ में, भारत सरकार के लाखो करोड़ो रूपये खर्च होने के बाद लगभग साढ़े तेरह हजार कॉलेजेस है प्राइवेट और सरकारी सब मिलाकर और ४५० विश्वविद्यालय है, निजी और सरकारी कोनो मिलाकर, साढ़े तेरह हजार कॉलेजेस है और ४५० विश्वविद्यालय है. जब लाखो करोड़ो रूपये सरकार ने खर्च किया है.
अब मै आपको १८२२ के बारे में जानकारी देता हु, कि १८२२ में अकेले मद्रास प्रान्त में,मद्रास प्रेसीडेंसी उसको कहा जाता है. अकेले मद्रास प्रान्त में, मद्रास प्रान्त का मतलब क्या है? आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक का कुछ हिस्सा, ये पूरा मद्रास प्रान्त है. अकेले मद्रास प्रान्त में १८२२ में ११,५७५ कॉलेजेस रहे है और १०९ विश्वविद्यालय रहे है. अकेले मद्रास प्रान्त में, और फिर मद्रास प्रान्त के बाद ऐसे ही मुंबई प्रान्त है, और फिर मुंबई प्रान्त के बाद ऐसे ही पंजाब प्रान्त है. फिर नार्थ – वेस्ट फ्रंटियर है, ये चारो स्थानों को मिला दिया जाये तो भारत में लगभग १४००० से भी ऊपर कॉलेजेस रहे है और लगभग ५०० से सवा ५०० के बीच में विश्वविद्यालय रहे है. अब विश्वविद्यालय आज से ज्यादा, कॉलेजेस भी आज से ज्यादा, सन १८२२ में भारत की ये स्थिति है, माने उच्च शिक्षा भारत में अदभुत रही है, अंग्रेजो के आने के पहले तक, माध्यमिक शिक्षा तो अदभुत है ही, प्राथमिक शिक्षा भी बहुत अदभुत है लेकिन उच्च शिक्षा भी इस देश में अदभुत है. और इन कॉलेजेस में विशेष रूप से जो कॉलेजेस रहे है, अभियांत्रिकी के अलग कॉलेजेस है, इंजीनियरिंग के अलग कॉलेजेस है, सर्जरी के अलग कॉलेज है,मेडिसिन के अलग कॉलेज है. जिनको आज हम कहते है न मेडिकल कॉलेज अलग है,इंजीनियरिंग कॉलेज अलग है. मैनेजमेंट के कॉलेज अलग है, ये तो भारत में १८२२ में भी है, सर्जरी के विश्वविद्यालय अलग है. और ये हमारे चिकित्सा विज्ञान में जिसको हम आयुर्वेद कहते है, इसके विश्वविद्यालय अलग है, और मैनेजमेंट के विश्वविद्यालय अलग है. ये पुरे भारत में फैले हुए है और पुरे भारत के विद्यार्थियो की व्यवस्था यहाँ पर है. हमने सुना है तक्षशिला एक विश्वविद्यालय कभी होता था, हमने सुना है कभी नालंदा नाम का एक विश्वविद्यालय होता था. ये तक्षशिला नालंदा तो दो नाम है ऐसे तो ५०० से ज्यादा विश्वविद्यालय सम्पूर्ण भारत देश में हमारे आज से लगभग डेढ़ सौ– पोने दो सौ तक रहे है. तक्षशिला नालंदा तो आज से ढाई हजार साल पहले की कहानी है. लेकिन डेढ़ सौ पोने दो सौ साल पहले के भारत में सवा पांच सौ से ज्यादा विश्वविद्यालय है और १४००० के आस पास डिग्री कॉलेजेस है. तो शिक्षा व्यवस्था में भारत मजबूत है पूरी दुनिया में. आपको एक हंसी की बात मै कहू वो ये कि पुरे यूरोप में ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था सामान्य लोगों के लिए इंग्लैंड में आई. और वो सन. १८६८ में आई. इसका माने यूरोप के देशो में में तो उसके और बाद में आई. तो आप बोलेंगे १८६८ के पहले इंग्लैंड में स्कूल नहीं थे? स्कूल नहीं थे, ये बात को सही तरह से समझना है, राजाओं के जो बच्चे जो होते थे, राजाओं के जो अधिकारी होते थे, उन्ही के लिए स्कूल होते थे. और वो राजाओं के महल में चला करते थे, वो सामान्य रूप से सार्वजनिक स्थानों पर नहीं चला करते थे. और साधारण लोगों को उनमे प्रवेश भी नहीं था, इंग्लैंड और यूरोप में ये माना जाता था कि शिक्षा जो है वो विशेषज्ञो के लिए है. और राजा विशेषज्ञ है तो राजा को शिक्षा है, उसके बच्चों को शिक्षा है, उसके अधिकारियो के बच्चों को शिक्षा है. आम आदमी को शिक्षित होने की जरूरत नहीं है. क्यों? तो यूरोप के दार्शनिक कहते है कि आम आदमी को तो गुलाम बन के रहना है, उसको शिक्षित होने से फायदा क्या है. दुनिया में बहुत बड़ा दार्शनिक माना जाता है अरस्तू और उससे भी बड़ा माना जाता है सुकरात. अरस्तू और सुकरात दोनों कहते है कि अन्य बच्चों को शिक्षा नहीं देनी चाहिए, शिक्षा सिर्फ राजा के बच्चों को,राजा के अधिकारियो के बच्चों को ही देनी चाहिए, तो उनके लिए कुछ पढने और पढ़ाने की व्यवस्था है, आम बच्चों के लिए नहीं है. जबकि भारत में बिलकुल उलटा है. शिक्षा आम बच्चों के लिए है, साधारण बच्चों के लिए है, वो गरीब हो, या अमीर हो, ऐसी अदभुत शिक्षा व्यवस्था हमारे देश में रही है.
Saturday 1 November 2014
Posted by Ashutosh Garg
Tag :
Analysis,
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दहेज़ प्रथा: हिन्दू समाज पर कलंक
दहेज़ प्रथा देश और समाज के लिए अभिशाप हैं,आज दहेज के कारण समाज में अनेक तरह की बुराइयां जन्म ले रही हैं। दहेज़ के नाम पे कन्या पक्ष के लोगो का शोषण किया जा रहा हैं और कन्यायों को तरह- तरह कि यातना दी जाती हैं जो कि महापाप हैं| हालाँकि अभी के समय में सभी लोग परिचित है की दहेज़ क्या होता है, तथापि एक परिचय के साथ इस गंभीर मुद्दे को आपके समक्ष रखना अवश्यक है. दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की ओर से वर को दी जाती है। आज हम इसका विकृत रूप समाज में देखते है. भारत में दहेज़ की पुरानी परंपरा रही है, परन्तु समय के साथ ये विकृत होता गया, और आज ये एक ऐसे स्वरुप में परिणत हो गया है की कोई सभ्य समाज इसे स्वीकार नहीं कर सकता. आज इस लेख में हम इसके शुरुआत के कारण, इसके विकृत रूप का परिणाम तथा इसके निवारण के उपायों में बारे में देखेंगे.
Friday 21 March 2014
Posted by Ashutosh Garg
राम नाम के बैन होने के मायने
अभी ये खबर आई कि सऊदी में "राम" और कई ऐसे और नाम को प्रतिबंधित कर दिया गया उसका लेख जैसा की पंजाब केसरी के वेबसाइट पर आया उसका कुछ अंश ये है -
"सऊदी
अरब राजपरिवार ने भारतीय नामों समेत 50 नामों को सांस्कृतिक और धार्मिक
भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताकर बैन कर दिया है। सऊदी अरब में अब
भारतीय माता-पिता अपने बच्चों का नाम राम, माया, रामा या फिर आमिर नहीं रख
सकेंगे। सऊदी अरब ने नामों को बैन करने के समर्थन में तर्क देते हुए कहा कि
है कि ये नाम धार्मिक संवेदनाओं को आहत करते हैं, राजपरिवार से जुड़े हुए
हैं और गैर-इस्लामी मूल के हैं।
सऊदी अरब में करीब सात फीसदी तादाद भारतीय मूल के लोगों की है। आमिर एक पॉप्युलर मुस्लिम नाम है, जिसका मतलब राजकुमार होता है। वहीं माया, राम, रामा और मल्लिका बेहद आम हिंदू नाम हैं।"
सऊदी अरब में करीब सात फीसदी तादाद भारतीय मूल के लोगों की है। आमिर एक पॉप्युलर मुस्लिम नाम है, जिसका मतलब राजकुमार होता है। वहीं माया, राम, रामा और मल्लिका बेहद आम हिंदू नाम हैं।"
इस बैन के बारे में दिया गया कारण और भी दिलचस्प है अभी हम उसका विश्लेषण करेंगे -
Wednesday 19 March 2014
Posted by Ashutosh Garg
काश "आप" राजनीती में न आते
आज जो अरविन्द जी की स्थिति
है उसे देखकर मुझे तरस भी आता है दुःख भी होता है. आज जिस प्रकार से सभी अरविन्द
जी का विरोध बीजेपी और अन्य राजनितिक दलों के समर्थकों द्वारा हो रहा है, तथा जो
दुर्गति उनके व्यक्तित्व का सोशल मीडिया पर हुआ है वो सचमुच चिंतनीय है. अब भी ये
बहस का विषय हो सकता है कि राजनीति में आने के पीछे केजरीवाल का अपना स्वार्थ छुपा
था अथवा नहीं परन्तु उनके आने से कई ऐसे लोग जिनकी राजनितिक मंशा पूरी नहीं हो पा
रही थी उन्हें अवश्य लाभ हुआ था अतः ये नहीं कहा जा सकता की सभी लोग जो
Thursday 13 March 2014
Posted by Ashutosh Garg