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- दहेज़ प्रथा: हिन्दू समाज पर कलंक
Posted by : Ashutosh Garg
Friday 21 March 2014
दहेज़ प्रथा देश और समाज के लिए अभिशाप हैं,आज दहेज के कारण समाज में अनेक तरह की बुराइयां जन्म ले रही हैं। दहेज़ के नाम पे कन्या पक्ष के लोगो का शोषण किया जा रहा हैं और कन्यायों को तरह- तरह कि यातना दी जाती हैं जो कि महापाप हैं| हालाँकि अभी के समय में सभी लोग परिचित है की दहेज़ क्या होता है, तथापि एक परिचय के साथ इस गंभीर मुद्दे को आपके समक्ष रखना अवश्यक है. दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की ओर से वर को दी जाती है। आज हम इसका विकृत रूप समाज में देखते है. भारत में दहेज़ की पुरानी परंपरा रही है, परन्तु समय के साथ ये विकृत होता गया, और आज ये एक ऐसे स्वरुप में परिणत हो गया है की कोई सभ्य समाज इसे स्वीकार नहीं कर सकता. आज इस लेख में हम इसके शुरुआत के कारण, इसके विकृत रूप का परिणाम तथा इसके निवारण के उपायों में बारे में देखेंगे.
शुरुआत - भारत एक सभ्य और सुसंस्कृत देश बहुत प्राचीन काल से रहा है. हर एक प्रथा जो यहाँ शुरू हुई उसका कोई न कोई उद्देश्य समाज कल्याण रहा है. तथापि अभी ये बहस का विषय है कि प्राचीन काल में शुरू की गयी ये परम्पराए अभी महत्व की है या नहीं. आपको यदि ज्ञात न हो तो जान ले की हिन्दू समाज में बेटी को सम्पति का अधिकार नहीं है. अर्थात वो अपने पैत्रिक संपत्ति में कोई दावा नहीं का सकती. भारत के स्वतंत्रता के बाद लडकियों को भी ये अधिकार दिया गया. दहेज़ प्रथा का सम्बन्ध इसी से है. क्योकि भारत के गावों में संपत्ति मुख्यतः अचल ही हुआ करती है और लड़की को विवाह के बाद दुसरे गाँव जाना होता है तो उस लड़की के लिए इस संपत्ति की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती.
परन्तु पुत्री होने के कारन उसका उसके पिता पर अधिकार है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता. इसी अधिकार को देने हेतु ये परंपरा की शुरुआत हुई की पुत्री को उसका हिस्सा उसके विवाह के समय दे दिया जाये. यही प्रथा बाद में दहेज़ में परिणत हुई. प्राचीन काल से गाय का बहुत महत्व रहा है और गौ दान एक बहुत महत्वपूर्ण परंपरा है. तो विवाह के समय अर्थात कन्यादान के साथ ही गौ दान की परंपरा भी रही. हालाँकि अभी तक ये केवल वधु पक्ष के सुविधानुसार ही रहा, अर्थात पुत्री का पिता अपने इच्छा अनुसार जो दान करता था, उसे वर पक्ष स्वीकार कर लेता था.
बाद में जैसे जैसे गायों की संख्या घटी, अन्य चीजे (रूपया, सोना इत्यादि ) का महत्व बढ़ा तो ये वर्तमान रूप में आने लगी. धीरे धीरे ये वर पक्ष के मांग पर निर्भर हो गया और आज कल तो लडको के योग्यता के अनुसार रेट फिक्स हो गया है. और एक "स्टेटस सिंबल" बन गया है. जो जितना दहेज़ दे पाए या ले पाए वो समाज में उतना ही बड़ा माना जाने लगा है.
जबतक लोग कन्या पक्ष द्वारा दिया गयादान बिना दबाव के सहर्षस्वीकार करते रहे तब तक तो ठीक था और नियमानुसार भी ठीक है क्योकि कानून के अनुसार भी पुत्री का पिता के संपत्ति में अधिकार है तो पिता अपनी चल संपत्ति का एक हिस्सा अपने पुत्री को दे और अचल संपत्ति पुत्र के लिए रक्खे तो कोई समस्या नही होगा. परन्तु जब दहेज़ के आधार पर ही विवाह होने लगे तो कई समस्याए शुरू हो जाती है. सबसे प्रमुख समस्या तो दहेज़ हत्या का है. कम दहेज़ मिलने पर वर पक्ष द्वारा वधु को प्रताडीत करने के हजारो मामले सामने आते रहते है.
"देश में औसतन हर 1 घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है और वर्ष 2007 से 2011 के बीच इस प्रकार के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई है।" राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से वर्ष 2012 में दहेज हत्या के 8,233 मामले सामने आए। आंकड़ों का औसत बताता है कि प्रत्येक घंटे में एक महिला दहेज की बलि चढ़ रही है।
ये आकड़ा देख कर किसी का भी मन दर्द से कांप उठेगा, फिर भी इन मौत के संख्या में वृधि हो रही है. जैसा की हम ये दावा करते है की हम सभ्य बन रहे है, मुझे तो लगता है की हमारा पतन हो रहा है. हमारे शास्त्रों में तो नारी को बहुत ही उच्च स्थान दिया गया है, कहा गया
यत्र
नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र
देवता: ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।
जहां पर
स्त्रियों की पूजा (आदर) होती है, वहां देवता रमते हैं । जहाँ उनकी पूजा नहीं
होती, वहाँ सब काम निष्फल होते हैं ।
शोचन्ति
जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न
शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि
सर्वदा ।
जिस कुल
में स्त्रियाँ दु:खी रहती हैं, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है । जहां वे
दु:खी नहीं रहतीं, उस कुल की वृद्धि होती है ।
अब आज हमारे विचार करने का समय है क्या हम स्त्रियों को प्रताड़ित कर क्या उनका आदर कर रहे है, और यदि नहीं तो हम अपने शास्त्रों की ही अवहेलना क्यों कर रहे है. नारी तो माता लक्ष्मी कि स्वरुप होती हैं तो उनका अनादर करके
कोई सुखी कैसे रह सकता हैं ? जिस घर में नारी का सम्मान नहीं होता हैं वहाँ
भगवन कभी नहीं जाते हैं,राजा जनक भी कन्या - दान किये और स्वेच्छा से बहुत कुछ महाराज दशरथ जी को दिए जिसको उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया लेकिन आज तो समाज में विपरीत परिस्थिति है लोग कन्या पक्ष पे दहेज़ के लिए दबाव देते हैं जो कि महापाप हैं|
केवल यही अपराध नहीं है और भी कई चीजे है, सर्वप्रथम तो लोग आज कल पुत्री की इच्छा ही समाप्त कर बैठे है. पहले जहाँ बेटी को लक्ष्मी का स्वरुप मान कर स्वागत किया जाता है वही आज देश में भ्रूण हत्या हो रहा हैं, जो कि दहेज़ प्रथा का ही परिणाम हैं।इसके अलावा बेटी के जन्म से ही पिता उसके विवाह के चिंता में धन जुटाने लगता है क्योकि जितना अधिक धन जूता पायेगा, उतने अच्छे घर में वो अपने पुत्री का विवाह का पायेगा. इसी कारनवश वह अपने पुत्री की पढाई पर भी ध्यान नहीं देता. सोच ये होती है कि सब कुछ यदि इसके पढाई पर खर्च कर देंगे तो दहेज़ क्या देंगे. इससे कारन घर में पुत्र और पुत्री में दोहरा बर्ताव होता है. आज सभी दहेज़ के लोभी व्यक्ति और अभिभावकों को ये सोचने की आवश्यकता है कि आपको एक पढ़ी लिखी बहु चाहिए अथवा एक अनपढ़ बहु और धन.
इसके निवारण के लिए कई लोग ये लिखते है की आज ही प्रण ले की न दहेज़ लेंगे और न देंगे. मैं इसे सही नहीं मानता. जो समाज से जुड़े नहीं है वे ही ऐसा कह सकते है. इसका पहला हिस्सा तो किया जा सकता है परन्तु दूसरा हिस्सा करना असंभव है. जो वधु पक्ष ऐसा करने का प्रयास करता है उसके लिए वर ढूँढना अँधेरे में सुई ढूंढने के समान होता है. अतः जिनकी गलती है उन्हें ही सुधर के लिए भी आगे आना चाहिए. वर पक्ष ये सकल्प ले की दहेज़ की मांग नहीं करेंगे तो ये व्यवस्था अपने आप सुधर जाएगी.
आपका सुझाव आमंत्रित है.