Posted by : Ashutosh Garg Wednesday 19 March 2014


 अभी ये खबर आई कि सऊदी में "राम" और कई ऐसे और नाम को प्रतिबंधित कर दिया गया उसका लेख जैसा की पंजाब केसरी के वेबसाइट पर आया उसका कुछ अंश ये है - 
"सऊदी अरब राजपरिवार ने भारतीय नामों समेत 50 नामों को सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताकर बैन कर दिया है। सऊदी अरब में अब भारतीय माता-पिता अपने बच्चों का नाम राम, माया, रामा या फिर आमिर नहीं रख सकेंगे। सऊदी अरब ने नामों को बैन करने के समर्थन में तर्क देते हुए कहा कि है कि ये नाम धार्मिक संवेदनाओं को आहत करते हैं, राजपरिवार से जुड़े हुए हैं और गैर-इस्लामी मूल के हैं
सऊदी अरब में करीब सात फीसदी तादाद भारतीय मूल के लोगों की है। आमिर एक पॉप्युलर मुस्लिम नाम है, जिसका मतलब राजकुमार होता है। वहीं माया, राम, रामा और मल्लिका बेहद आम हिंदू नाम हैं।" 

इस बैन के बारे में दिया गया कारण और भी दिलचस्प है अभी हम उसका विश्लेषण करेंगे -
पहला जो कारण दिया गया है वो कि ये नाम सम्प्रदाइक भावनाओ को ठेस पहुंचती है. अब यहाँ प्रश्न ये है की किसके भावनाओ को ठेस पहुँच रहा है. क्या राम नाम के बैन होने से हिन्दुओं के भावनाओ को ठेस नहीं पहुंची. क्या वहां के सरकार को हिन्दू भावनाओ की कोई कद्र नहीं. अब इस प्रश्न का उत्तर तो इस बैन में साफ दिख रहा है. आज जबकि सारी दुनिया सम्प्रदाइक शौहर्द्य की बात कर रही है और आपसी भाईचारे और सम्मान की बात हो रही है वहां इस प्रकार का प्रतिबन्ध हमें ये सोचने पर विवश करता है कि क्या सचमुच सम्प्रदाइक कट्टरता का अंत होगा, अथवा ऐसी मानसिकता के लोग अन्य मतों के लोगो के साथ दोहरा मापदंड अपनाते रहेंगे.
दूसरा कारण तो राज परिवार से जुड़े होने का दिया गया है उसका उदाहरण भी समाचार में ही है जो की आमिर है. ये वेशक एक इस्लामी नाम है, हम भारत वासियों के एक प्रिय मुस्लिम अभिनेता है जिनका नाम आमिर है. जैसा की समाचार में है की आमिर का अर्थ राज कुमार है. अब कोई वहां ये नाम बस इसलिए नहीं रख सकता कोई और राजकुमार कैसे हो सकता है. ये एक बहुत ही गन्दी मानसिकता है. इश्वर के प्रति धन्यवाद की हमारे भारतीय संस्कृति में ऐसा कोई फतवा नहीं है की कोई भगवन के नाम पर अपना नाम नहीं रख सकता. यहाँ तो इसने पाश्चात्य कारन के बाद भी ९९% लोगो के नाम भगवन के नाम पर रक्खे जाते है. सऊदी में ये प्रतिबन्ध लगाने वाले लोग यदि भारत में हो गए तो यहाँ के लोगो को तो नाम की भारी कमी हो जाएगी. हमारे यहाँ तो हर देवता के शहस्त्र नाम होते है और हम कोई भी अच्छा सा नाम चुनके रख देता है. हम तो भगवान का नाम रखने को स्वतंत्र है और ये तो नाम बस इसलिए नहीं रख सकते कि आमिर का अर्थ राजकुमार है.

तीसरा कारण तो सबसे ज्यादा चौकाने वाला है. वो ये की प्रतिबंधित नामों में कुछ नामो को बस इसलिए प्रतिबंधित किया गया है की वे गैर इस्लामिक है. मेरा ये निश्चित मानना है कि किसी भी देश के संस्कृति को बचाना उसे संरक्षित करना आवश्यक है. और ये मैं पुरे दृढ़ता से भारत के बारे में भी कहता हूँ और अन्य देशो के बारे में भी. परन्तु नाम से आपकी संस्कृति को क्या खतरा हो सकता है. वो भी तब जबकि ये नाम केवल गैर मुस्लिम रख रहे है यदि राम नाम से प्रभावित होकर मुस्लीम भी अपने बच्चो का नाम राम रखने लगे तो ये एक अलग सी बात होती, परन्तु यहाँ तो गैर मुस्लिम जिनकी राम पर श्रद्धा है उनको इससे वंचित करना किसी सभ्य समाज को शोभा नहीं देता. 

जो लोग भारत में मुहम्दन मत का प्रचार करते है वे यहाँ तक बोल जाते है की हम राम को एक पैगम्बर के रूप में स्वीकार करते है| आज वैसे लोगो से एक प्रश्न यदि आप राम को एक पैगम्बर के रूप में स्वीकार करते है तो आप इस फैसले का विरोध क्यों नहीं करते. क्या इस्लाम के एक पैगम्बर का इतना अपमान आप चुपचाप सहेंगे. क्या कुरआन ने ये नहीं कहा कि कोई भी हमारे किसी पैगम्बर में भेद न करे. एक पैगम्बर मुहम्मद का नाम हर मुस्लिम के नाम के साथ और दुसरे पैगम्बर राम (कुछ विशेष लोग जो भारत में इस्लाम का प्रचार करते है और ये साबित करने का परस करते है की सनातन धर्म भी कभी इस्लाम था और राम ,कृष्ण इत्यादि उसके पैगम्बर थे.उनका ये मनना है ये लेखक की मान्यता नहीं है) के नाम पर प्रतिबन्ध या मैं ये सोचूं की राम को आपका पैगम्बर मानना बस इस्लाम को फैलाने का एक जरिया मात्र है. 

 आज जबकि मतों के बिच की दूरियां मिटाने का समय है और ऐसे कई प्रयास सनातन धर्म के संतो (जैसे स्वामी विवेकानंद) ने किया है, ऐसी परिस्थिति में इस तरह के प्रतिबन्ध आना फिर से सोचने पर मजबूर करता है की क्या वास्तव में कभी सम्प्रदैक कट्टरता का अंत होगा भी अथवा नहीं. हालाँकि ऐसे लोग हिन्दुओ में भी है जो मानते है की इस धरती पर केवल वही श्रेष्ठ है. परन्तु ऐसी विचारधारा के लोगो को हिन्दू समाज कभी ज्यादा समर्थन नहीं देता, और मेरे अनुसार किस भी मत में ऐसे लोगो को उच्च स्थान नहीं मिलना चाहिए. 
आज बहुत से लोग भारत को इस्लामी बनाने के प्रयास में लगे है. यदि ये देश सचमे कभी मुस्लिम बहु संख्यक हुआ तो राम, कृष्ण और इस महान  संस्कृति के अन्य कई महापुरुषों की क्या स्थति होगी ये अंदाजा लगना मुश्किल नहीं है.  ये प्रतिबंध इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि सऊदी इस्लाम का आदर्श कहा जाता है तो कोई कारन नहीं है की जो निर्णय सऊदी ने लिया है वो अन्य इस्लामी देशो में नहीं लिया जायेगा. 

अतः यदि हमें इस देश के संस्कृति की रक्षा करनी है, और इस हेतु बलिदान देने वाले महापुरुषों का सम्मान करना है तो हमें "गलत तरीके का प्रयोग करके  फैलाये जा रहे" इस्लाम को भारत में भी रोकने का प्रयास करने की आवश्यकता है और उनको मदद करने की आवश्यकता है जो इसे रोकने में लगे है. यहाँ ये बात द्रष्टव्य है की मैं इस्लाम का विरोधी नहीं हूँ. मैं ये नहीं चाहता की भारत में उनके अधिकार छीन लिए जाये. नहीं, मैं पुरे दिल से चाहते हूँ की हर मत अपने अपने मान्यताओ का पालन करे. और सबको सही तरीके से अपने मत के प्रचार का अधिकार भी हो, परन्तु ये अधिकार तभी रह सकता है जब अभी की जो व्यवस्था है वो बनी रहे. कभी भी कोई देश जहाँ ८०% जनता मुस्लिम है वो पंथनिरपेक्ष नहीं हो सकता है परन्तु भारत में ८०% हिन्दू होने बाद भी ये है. हाँ इस व्यवस्था में अपनी खामिया है परन्तु मुलभुत अधिकार सबके पास है. यदि किसी के साथ अन्याय होता है तो उसे अधिकार है की वो अपनी बात रख सकता है. अपने मत का प्रचार बिना किसी समस्या के कर सकता है. परन्तु किस इस्लामी राष्ट्र में कभी दुसरे मतों को प्रचार का अधिक नहीं दिया जायेगा.
अतः सबको मिलकर ऐसी सोच से मुकाबला करने की आवश्यकता है. और ये बात केवल हिन्दू नहीं बल्कि मुसलमान भाई जो प्रोग्रेसिव सोच रखते है उनके लिए भी है. जो दुसरे मतों पर अत्याचार नहीं देखना चाहते है उन सभी से मेरी यही अपील है. और ऐसी गन्दी मानसिकता जो केवल मत के अधार पर लोगो को असमानता फैलती है उसका विरोध होना चाहिए, चाहे ये सोच कोई हिन्दू रक्खे अथवा मुस्लिम. 

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